गले में बेटी को लटकाकर यूं चलाता था रिक्शा, 8 दिन बाद मिली सड़ी-गली लाश
दामिनी को मां का दामन तो जन्म से ही नसीब नहीं हुआ। पर पिता के रूप में एक छत थी, जिसने उसे जिंदा रहने का माद्दा सिखाया, क्योंकि वो इतनी कमजोर पैदा हुई थी कि एक बार डॉक्टर भी हाथ खड़े कर चुके थे। पर वो रिक्शा चालक पिता बबलू ही था जिसने जिंदगी को हारने नहीं दिया। दो दिन की बेटी को वह गले में झूला बनाकर रिक्शा चलाने निकल पड़ा। जिसने भी वो नजारा देखा वो द्रवित हो उठा। ऐसे पिता को सलाम करते हुए दामिनी के लिए देश-विदेश से लोगों ने मदद के लिए दिल खोल कर रख दिया। उसकी परवरिश करने वाली छत (पिता) अब नहीं रही
बबलू का शव मंगलवार सुबह हीरादास जसवंत प्रदर्शनी स्थल के गेट नंबर दो के पास बनी एक कोठरी में क्षत-विक्षत हालत में पड़ा मिला।
- असल में उसकी मौत 7-8 दिन पूर्व ही हो चुकी थी, लेकिन मौत का पता शव से बदबू आने पर लोगों को लगा।
- अटलबंध थाना के एएसआई चतुर्भुज ने बताया कि उसका कोई बालिग वारिस नहीं होने के कारण अपनाघर के श्मशान में ले जाकर शाम को अंतिम संस्कार कर दिया। इससे पूर्व बबलू की मृत्यु की सूचना शिशु गृह के अधिकारियों को दे दी गई, क्योंकि दामिनी की परवरिश वहीं हो रही है।
- पुलिस का मानना है कि अत्यधिक शराब पीने से उसकी मौत हुई।
जन्म देते ही हो गई थी मां की मौत
- मामला अक्टूबर 2012 का है। जनाना अस्पताल में बालिका को जन्म देते ही मां की मौत हो गई।
- पिता रिक्शा चलाता था। नवजात को घर पर अकेला कैसे छोड़े, इसके लिए उसने गले में कपड़े की रस्सी का झूला बनाकर दामिनी को साथ लिया और रिक्शा चलाने लगा।
- मगर वह बिना पोषण के कमजोर हो रही थी और वजन मामूली हो चला था।
- मीडिया में यह फोटो आने के बाद दामिनी को दुनिया के हर हिस्से से दुलार मिला, फिर चाहे वो विदेश में बसे दीपक पारधी हों, अमेरिका के विजय गढ़वी, किरण श्रीनिवासन, अमिताभ गांधी, गौतम अरोरा, रवि रविपति, मेलबोर्न के शैलेंद्र या बेल्जियम के प्रेम।
- दामिनी को इलाज के लिए जयपुर के सबसे महंगे अस्पताल फोर्टिस में भर्ती कराकर इलाज कराया गया। जहां 5 नवंबर 2012 तक इलाज चला।
शिशु गृह में स्वस्थ है दामिनी
- दामिनी शिशु गृह में खेलती-कूदती है। उसे अक्षर ज्ञान हो गया है। उसे नहीं पता कि वह किन हालातों में रह रही है।
- दामिनी की उम्र करीब साढ़े चार साल है।
- पिता का साया उठने का उसे फिलहाल आभास नहीं है, लेकिन उसका मन तो उन कंधों पर सवार होने को जरूर मचलेगा, जिसने उसे जीना सिखाया।
- अधीक्षक राजेंद्र शर्मा ने बताया कि दामिनी के पैरों की दिक्कत दूर हो गई है।
खाते में जमा थे 18 लाख
- तत्कालीन जिला कलेक्टर ज्ञानप्रकाश शुक्ला ने उसकी मदद के लिए एसबीबीजे में खुलवाए खाते में उस समय करीब 18 लाख रुपए जमा हुए थे, जो अब ब्याज सहित 25-30 लाख हो गए होंगे।
- यह राशि दामिनी के बालिग होने पर उसे मिलेगी।
- पिता बबलू शराब पीने का आदी था। प्रशासन ने फंड के सही इस्तेमाल के लिए कमेटी बना दी।
- कमेटी के सदस्य अपना घर के संस्थापक डा. बी.एम. भारद्वाज का कहना है कि दामिनी के लिए अभी भी दूर-दूर से फोन आते हैं।
- ऐसा कोई भी महीना नहीं होता है, जब उसकी कुशलता के समाचार पूछने वाले का फोन नहीं आता हो। साल में 20-25 कॉल तो आते ही हैं, जो उसकी जरूरतों के बारे में भी पूछते हैं।


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