शादी में घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया गया था, ऐसे निकली थी इस गैंगस्टर की बरात
एक वक्त ऐसा भी था, जब कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल को गांव की दबंग जातियों ने घोड़ी पर चढ़ने नहीं दिया था। बात 1992 की है। गांव से आनंदपाल की बरात निकलने वाली थी। घोड़ी तैयार थी, लेकिन गांव की दबंग जातियों के कुछ लोगों को आनंदपाल का घोड़ी पर चढ़ना पसंद नहीं आया। काफी विवाद हुआ। लेकिन आनंदपाल भी हार नहीं मानने वाला था। राजपूत नहीं, रावणा राजपूत था आनंदपाल...
आनंदपाल के गांव के दबंग आनंदपाल को राजपूत नहीं मानते थे, क्योंकि वो दारोगा यानी रावणा राजपूत था। इस जाति के लोगों को आज भी निचले तबके का माना जाता है।
यही कारण था कि जब आनंदपाल की बरात घोड़ी पर निकलने के लिए तैयार हुई तो काफी बवाल हुआ।
- तब आनंदपाल ने अपने दोस्त और उभरते छात्र नेता जीवणराम गोदारा को अपने गांव बुलाया। - गोदारा दलबल के साथ आनंदपाल के गांव पहुंचे और तब जाकर आनंदपाल की बरात घोड़ी पर निकली।
- शादी के बाद आनंदपाल ने बीएड किया और सीमेंट का काम करने लगा। इस दौरान वह राजनीति में भी उतरा।
- कभी हर प्रकार के नशे से दूर रहने वाला आनंदपाल राजनीति में आना चाहता था। इसके लिए उसने प्रधान का चुनाव भी लड़ा। लेकिन हार के बाद वो राजनेताओं के निशाने पर आ गया।
- लेकिन कई सालों बाद आनंदपाल ही गोदारा की हत्या का कारण बना। आनंदपाल ने 27 जून 2006 को डीडवाना में जीवणराम गोदारा हरफूल जाट की हत्या की थी।
आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद मनाई गईं खुशियां
- एनकाउंटर के बाद गोदारा के गांव आजवा में लोगों ने खुशियां मनाईं। गोदारा की पत्नी मोहनी देवी ने कहा कि अपराध के युग का अंत हुआ है अब लोग शांति रखें।
जानबूझकर किया एनकाउंटर, सरेंडर का नहीं दिया मौका
- आनंदपाल के मामा अमर सिंह का आरोप है कि आनंदपाल का जानबूझकर एनकाउंटर किया गया है और उसे सरेंडर करने का मौका देने की बात झूठी है।
- एसओजी और पुलिस दोनों उसे मारना ही चाहते थे। परिजनों की मांग है कि पकड़े गए दोनों भाई आनंदपाल के अंतिम संस्कार में भाग ले और पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए।
- राजपूतों के एक बड़े तबके का मानना है कि आनंदपाल का एनकाउंटर पूरी तरह फर्जी है। यदि वो जिंदा पकड़ा जाता तो कई नेताओं और अफसरों की पोल खुल सकती थी।

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