सेक्स ट्रेड का अड्डा बन रहा ये रोहिंग्या कैंप, इस हाल में जी रहे लोग
म्यामांर में भड़की हिंसा के चलते बांग्लादेश में रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या 6 लाख से ज्यादा हो गई हैं। ये शरणार्थियों कॉक्स बाजार के पास कुतुपालोंग रिफ्यूजी कैम्प में रह रहे हैं। यहां लोगों के पास खाने और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए भी जंग लड़नी पड़ रही है। ऐसे हालात में कैम्प में पहुंची रोहिंग्या महिलाएं और लड़कियों के सेक्स कारोबार में दाखिल होने का खतरा मंडरा रहा है।
सबसे बड़े रोहिंग्या रिफ्यूजी कैम्प कुतुपालोंग में सेक्स कारोबार पहले से भी उभार पर है। सालों से रह रही रोहिंग्या लड़कियां और महिलाएं सेक्स वर्कर के पेश से जुड़ी हुई हैं।
- इस दौरान कैम्प में लाखों की तादाद में आई महिलाओं और लड़कियों से इस कारोबार के बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। दलालों की नजर कैम्प में आए नए लोगों पर है।
- दलाल के रूप में काम करने वाली नूर ने कहा कि कुतुपालोंग में रह रही कम से कम 500 रोहिंग्या सेक्स वर्कर के पेशे से जुड़ी हुई हैं। इनमें से ज्यादातर कैंपों में कई सालों से रह रही हैं।
- नूरी के मुताबिक, अब दलालों और सेक्स वर्कर्स को रिक्रूट करने वाले लोगों की नजर नई लड़कियों और महिलाओं पर टिकी है।
- यूनाइटेड नेशन की एंजेसीज का कहना है कि उनके पास इस बारे में आंकड़े नहीं हैं। उन्हें नहीं पता कि कैम्प में कितने सेक्स वर्कर का काम कर रहे हैं।
- लैंगिग हिंसा मामलों की एक्सपर्ट के तौर पर यूएन की पॉपुलेशन एजेंसी यूएनएफपीए से जुड़ी सबा जारीव ने कहा, इनकी संख्या बता पाना मुश्किल है। हम कैम्प में सेक्स वर्कर का काम करने वालों का आंकड़ा इकट्ठा नहीं करते।
- बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के दो रिफ्यूजी कैम्प्स में 25 अगस्त से पहले 34 हजार रोहिंग्या मुस्लिम रह रहे थे, लेकिन अब इनकी संख्या करीब 6 लाख पहुंच चुकी है। इनमें 58 फीसदी बच्चे हैं।
- हालात ये हैं कि यहां लोगों के रहने के लिए जमीन और छतें तक कम पड़ गई हैं। कैंप्स में शरणार्थियों को खाने की कमी से भी जूझना पड़ रहा है। मेडिकल सुविधाओं में कमी की चलते बीमारियां भी फैल रही हैं।
- न्यूज एजेंसी एफे के मुताबिक, बच्चों के लिए काम करने वाली यूनाइटेड नेशन की संस्था-यूनिसेफ की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यहां रह रहे बच्चों पर संक्रमण से होने वाली बीमारियों का भी गंभीर खतरा है।
- रोहिंग्या मुस्लिम प्रमुख रूप से म्यांमार के अराकान प्रांत में बसने वाले अल्पसंख्यक हैं। इन्हें सदियों पहले अराकान के मुगल शासकों ने यहां बसाया था।
- साल 1785 में बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने इलाके से बाहर खदेड़ दिया।
- इसी के बाद से बौद्ध धर्म के लोगों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच से हिंसा और कत्लेआम का दौर शुरू हुआ, जो अब तक जारी है।

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