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पुराणों के अनुसार ये 7 पराक्रमी पुरुष साबित हुए सबसे बुरे पिता


अर्जुन ने चढ़ाई थी अपने ही बेटे की बलि।

"धरती हमारी माँ है तो आसमान हमारा पिता है।" अगर धरती की तरह माँ हमें गोद में बैठाकर दुलार करती है तो पिता का आशीर्वाद भरा हाथ भी आसमान की तरह हमेशा हमारे सिर पर रहता है।

किसी भी बच्चे के लिए उसके पिता उसकी लाइफ के हीरो होते हैं। एक वही होते हैं जो हमारे सपनों को अपना समझकर उसे पूरा करते हैं। बच्चे की जरूरतों और उसकी खुशी के लिए बिना कुछ सोचे-समझे खर्च करने वाले पिता जो अपने बच्चे के लिए करते हैं वो शायद ही कोई किसी के लिए करता हो। 

लेकिन अगर आप फिर भी अपने पिता को बुरा मानते हैं क्योंकि वो बुरी आदतों के लिए आपको टोकते हैं और कभी-कभी आप पर गुस्सा करते हैं तो शायद आप पुराणों के उन पिताओं के बारे में नहीं जानते हैं, जिन्होंने अपने ही बच्चों से दुश्मनों से भी ज्यादा बुरा व्यवहार किया।

चौंकिए मत! इस फेहरिस्त में अर्जुन और भीम सहित विश्वामित्र का नाम भी शामिल हैं। पूरा मामला जानने के लिए पढ़िए यह स्टोरी।


विश्वामित्र और शकुंतला

ऋषि विश्वामित्र का नाम तेजस्वी ऋषियों में लिया जाता है। उन्होंने स्वर्ग की अप्सरा मेनका से विवाह रचाया था। दोनों की एक पुत्री शकुंतला हुई। चूंकि पत्नी मेनका और पुत्री शकुंतला की उपस्थिति से विश्वामित्र ध्यान नहीं लगा पाते थे। ऐसे में उन्होंने दोनों को वहां से दूर जाने का आदेश दे दिया था। मेनका इसके बाद नवजात पुत्री शकुंतला को लेकर जंगल की ओर चल पड़ी। कुछ देर बाद नवजात बेटी को जंगल में ही छोड़कर मेनका ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। तभी वहां से ऋषि कण्व गुजरे और उन्होंने उस पुत्री को गोद ले लिया।

दुष्यंत और भरत

इतिहास खुद को दोहराने वाला था। जब शकुंतला बड़ी हुई तो प्रतापी राजा दुष्यंत को शकुंतला से प्रेम हो गया। उन्होंने बिना किसी को बताए जंगल में ही गंधर्व रीति से शकुंतला से विवाह कर लिया। यौन संबंध बनाने के बाद जब शकुंतला गर्भवती थीं। उसी दौरान अपने राजपाट के कार्यों की वजह से दुष्यंत को अपने राजमहल वापस लौटना पड़ा। अपने राज्य में पहुंचने के बाद दुष्यंत अपने कामकाज में लग गए और शकुंतला को भुला गए। दुष्यंत के पुत्र भरत को जन्म देने के बाद जब शकुंतला, दुष्यंत के राज्य में उनसे मिलने पहुंचीं तो दुष्यंत ने शकुंतला और अपने पुत्र को पहचानने से इनकार कर दिया।

अर्जुन और इरावन

द्रौपदी के श्राप के बाद जब अर्जुन को सालभर के लिए वन में निवास करने जाना पड़ा तो वहां उनकी मुलाकात नाग राजकुमारी उलूपी से हुई। दोनों एक-दूसरे के साथ प्रेम में पड़ गए। अर्जुन ने उलूपी से विवाह कर लिया। विवाह से इन दोनों को एक पुत्र 'इरावन' की प्राप्ति हुई। लेकिन 1 वर्ष बीतने के बाद अर्जुन, उलूपी और इरावन को नागलोक में अकेला छोड़कर अपने राज्य वापस लौट गए। समय के साथ जब इरावन बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता से मिलने की ठानी। जब इरावन, अर्जुन से मिलने पंहुचा तो वहां महाभारत का युद्ध चल रहा था। पांडवों की जीत सिर्फ तभी हो सकती थी जब किसी राजकुमार की बलि, काली माँ को चढ़ाई जाए। यह बात सुन इरावन ने खुद अपनी बलि चढ़ा दी।अगले पेज पर देखिए अन्य देवताओं से जुड़ी कथाएं।

भीम और घटोत्कच

अर्जुन की ही तरह वन में निवास करने के दौरान भीम ने राक्षसी हिडिम्बा से विवाह किया। दोनों का पुत्र आधा मनुष्य और आधा राक्षस था, जिसका नाम घटोत्कच था। भीम ने अपने इस पुत्र का इस्तेमाल कौरव और पांडव के बीच हो रहे युद्ध के दौरान किया था। घटोत्कच ने अपने बल से कौरवों की सेना को खूब नुकसान पहुंचाया था। तभी कर्ण ने घटोत्कच को वैजयंती शस्त्र से मार दिया। कर्ण को यह शस्त्र इंद्र से प्राप्त हुआ था।

शांतनु और भीष्म

भीष्म को जन्म देने के बाद उनकी माँ गंगा अपने पति शांतनु को छोड़कर चली गई थीं। एक बार गंगा से मिलने आए शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को देखा और उन्हें हस्तिनापुर का राजा बनाने का निर्णय लिया। एक दिन शांतनु जंगल से गुजर रहे थे, तभी उनकी नजर मछुवारे की बेटी सत्यवती पर पड़ी और वे सत्यवती पर मोहित हो गए। लेकिन मछुवारा सत्यवती का विवाह शांतनु से इसी शर्त पर करवाना चाहता था कि शांतनु और सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का अगला राजा होगा। पिता की इस चिंताजनक स्थिति को देखकर देवव्रत (भीष्म) ने प्रण लिया कि वो कभी विवाह नहीं करेंगे।

हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद

हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कहानी तो हम बचपन से सुनते आए हैं। इसमें हिरण्यकश्यप को एक बुरे पिता के रूप में बताया गया है। दरअसल उसका पुत्र प्रह्लाद, विष्णु का भक्त था। यही बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल नापसंद थी। इसी बात से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे प्रह्लाद को मारने की कोशिश कई बार की थी।

होलिका ने किया ऐसा काम

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका काे यह वरदान था कि आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। ऐसे में जब हिरण्यकश्यन ने होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाने को कहा तो वो तुरंत तैयार हो गई। मगर हुआ यह कि प्रह्लाद तो बच गया और होलिका जल गई।

उत्तानपाद और ध्रुव

विष्णु पुराण के अनुसार ध्रुव अपने पिता उत्तानपाद का प्यार पाना चाहते थे, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। दरअसल ध्रुव उत्तानपाद की पहली पत्नी सुनीति के पुत्र थे। वहीं उत्तानपाद का झुकाव उनकी दूसरी पत्नी सुरुचि और उसके बेटे उत्तम की ओर ज्यादा था। एक बार जब ध्रुव अपने पिता उत्तानपाद की गोद में बैठे थे उसी समय सुरुचि का वहां आना हुआ। ध्रुव को उत्तानपाद की गोद में बैठे देख सुरुचि आग बबूला हो गई और उसे हटाकर सुरुचि ने अपने बेटे उत्तम को उत्तानपाद की गोद में बैठा दिया। इस घटना के बाद ध्रुव बहुत विचलित हो गए और वे वन में निवास करने लगे। तब प्रभु विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि हर स्थिति में वे आसमान में रहेंगे और रोशन होंगे।