पूरे देश से 5 साल पहले 'आजाद' हो गया था भारत का यह गांव
पूरा देश मंगलवार यानी कल 71वां स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाएगा। आज तक आजादी से जुड़े कई किस्से और कहानियां आप सबने सुने होंगे। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पूरे देश से 5 साल पहले आजाद हो गया था। इस गांव का नाम है ईसुरू, जिसने 1942 में ही ब्रिटिश शासन से अपने आप को आजाद घोषित कर दिया था। ये है आजादी के पीछे की कहानी
कर्नाटक के शिमोगा जिला स्थित ईसुरू भारत का ऐसा गांव है, जिसने सबसे पहले ब्रिटिश शासन से अपने आपको आजाद घोषित किया था। 12 अगस्त, 1942 का वो ऐतिहासिक दिन, जब इस गांव के लोगों ने अंग्रेजों को लगान देने से इनकार कर दिया था और पूर्ण आजादी की मांग की थी। इस गांव के सबसे बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी 111 साल के हुचुरैय्यपा बताते हैं, '12 अगस्त को भरी दोपहरी में गांव के बाजार में काफी संख्या में लोग जमा हो गए।
दोपहर बाद ब्रिटिश फौज हमसे लगान लेने के लिए पहुंच गई। लेकिन, सभी ने एक स्वर में लगान देने से इनकार कर दिया। क्योंकि हमारे पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं था और हमने उनसे पूर्ण आजादी की मांग की।' वो बताते हैं, 'इस मांग के बाद वहां खामोशी छा गई और हम सब डरे हुए थे कि कहीं ब्रिटिश सैनिक हमपे लाठी-डंडे न बरसाने शुरू कर दें। लेकिन, उस वक्त ऐसा कुछ नहीं हुआ उन्होंने हमसे बात की और हमारे डिमांड के बारे में पूछा। उस दौरान हम सब गांधीवादी ड्रेस में थे और हमने खुद को स्वतंत्रता सेनानी बताया।
हमने उनसे एक ही डिमांड की पूर्ण आजादी की। कुछ देर के बाद वो वहां से चले गए।' इस विरोध के बाद गांव वालों को हौसला काफी बढ़ गया और उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों का हर चीज में विरोध करना शुरू कर दिया।
29 सितंबर, 1942 को आखिरकार वो ऐतिहासिक दिन आ ही गया जब ग्रामीणों ने ब्रिटिश अधिकारियों को ईसुरू में प्रवेश करने से रोक दिया और वीरभद्रेश्वर मंदिर के ऊपर तिरंगा फहराकर गांव को ब्रिटिश शासन के आजाद घोषित कर दिया। हालांकि, कुछ दिन बाद ब्रिटिश सरकार ने काफी संख्या में उस गांव में पुलिसबल भेजा।
परिणाम ये हुआ कि दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो गई, जिसमें गांव वालों ने एक रेवेन्यू ऑफिसर और एक पुलिस ऑफिसर की हत्या कर दी। इस घटना के बाद गांव के करीब 50 स्वतंत्रता सेनानी जंगल में भाग गए। लेकिन, जल्द ही उनलोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इनमें से 5 स्वतंत्रता सेनानी 8,9 और 10 मार्च 1943 को शहीद हो गए। इसके बाद आंदोलन और तेज होता चला गया और कई स्वतंत्रता सेनानी, महिलाएं और बच्चे आजादी की खातिर शहीद हो गए। आखिरकार 5 साल बाद पूरे देश के साथ-साथ यह गांव भी आजाद हो गया।


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