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यहां गुरु से ज्यादा होती है उनके शिष्य की पूजा, इसी जगह था उनका आश्रम


गुरु द्रोण की नगरी यानि साइबर सिटी गुड़गांव को पहले गुरुग्राम के नाम से जाना जाता था। सरकार ने फिर पुराना नाम रख दिया।

गुरु की महिमा का कोई शब्दों में बखान नहीं कर सकता। इतिहास में ऐसे कई गुरु हुए हैं, जिनका नाम सदियों से लिया जा रहा है। इन्हीं में एक नाम गुरु द्रोणाचार्य का भी है, जिन्होंने गुरु दक्षिणा में अपने शिष्य एकलव्य का अंगूठा ही मांग लिया था। गुरु पूर्णिमा के मौके पर नेक्सा न्यूज़ बताने जा रहा है उस शहर की कहानी, जहां गुरुभक्त एकलव्य को गुरु से भी बढ़कर पूजा जाता है। क्या है वह कहानी, कौन सा है यह शहर जहां पूजा जाता है एकलव्य को...

- हम बात कर रहे हैं गुरुग्राम, फिर गुड़गांव और हाल ही में फिर से गुरुग्राम कहलाने वाले साइबर सिटी की। महान गुरुभक्त एकलव्य का हरियाणा के गुड़गांव से गहरा संबंध है।

- पौराणिक कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने सिर्फ क्षत्रियों को शिक्षा देने की बात कहकर भील जाति से संबंध रखने वाले एकलव्य को अस्वीकार कर दिया था।

- बावजूद इसके बालक एकलव्य ने मन ही मन गुरु द्रोणाचार्य को ही अपना गुरु धारण कर लिया और उनकी एक मूर्ति बनाकर उसे ही साक्षात गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लग गया।

- बाद में जब वह धनुर्विद्या पारंगत हो गया तो एक दिन उसका गुरु से साक्षात्कार होता है। दूसरी ओर
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य को धनुर्धर अर्जुन ही सबसे प्रिय थे। उन्होंने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका अंगूठा मांगा लिया, ताकि धनुर्विद्या में वह अर्जुन का मुकाबला ही नहीं कर सके।

 असल में यही वो जगह है, जहां गुरु के एक वचन पर एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु दक्षिणा दी थी। आज भी मध्य प्रदेश और दक्षिणी राजस्थान से भील जाति के लोग यहां स्थित एकलव्य के मंदिर में पूजा करने आते हैं।

गुरु द्रोण की नगरी भी कहा जाता है इसे

 यह भी बताते चलें कि महाभारत काल के बाद भी गुड़गांव का इतिहास बड़ा गौरवपूर्ण रहा है। कालांतर से इसे गुरु द्रोण की नगरी यानि गुरुग्राम के नाम से जाना जाता रहा है। इसका कारण है कि इसे चक्रवर्ती सम्राट युद्धिष्ठिर द्वारा अपने गुरु द्रोणाचार्य को प्रदत्त माना जाता है।
- वर्षों तक गुरुग्राम रहा यह क्षेत्र विकास और उसके साथ आए भाषायी परिवर्तन के चलते गुरुग्राम से अपभ्रंश होकर गुड़गांव में बदल गया।

- पिछले साल हरियाणा की मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गुड़गांव का नाम बदलने का फैसला किया था, जिसके बाद से इस नगरी को एक बार फिर यह अपने पुराने नाम 'गुरुग्राम' के नाम से जाना जाने लगा है।

- पुराने गुड़गांव के रहने वाले लोग बताते हैं कि बाहर से आने वाले लोगों को यहां के इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है और लोकल लोग इसे भुला चुके हैं।

- महाभारत में पांडव और कौरवों को धर्म की सीख देने वाले गुरु द्रोणाचार्य का गांव, गुरुग्राम यही है। गुड़गांव वही जगह है, जहां अर्जुन ने चिड़िया की आंख में निशाना लगाया था। कुरुक्षेत्र में होने वाले महाभारत के युद्ध की तैयारी भी इसी स्थान पर हुई थी।
आइए जानें कितना बदल गया गुरु द्रोणाचार्य का गांव

- आज गुड़गांव को एक ऐसे शहर के रूप में पहचाना जाता है जो मॉडर्न स्टाइल से तैयार की गईं बिल्डिंग्स से घिरा हुआ है।

- पिछले 3 दशक में यहां करीब 400 बड़ी और मझोली इंडस्ट्रियल यूनिट्स ने कदम रखे हैं।
- भले ही आज इसकी पहचान हाईटेक सिटी के रूप में होती है, लेकिन इसकी पहचान कुछ और ही है, जिसके बारे में शायद कम ही लोग जानते हैं।
मारुति ने बदली गुरुग्राम की तकदीर

- 1970 के अंत में मारुति सुजुकी का प्लांट लगने के साथ ही इस शहर की इकोनॉमिकल डेवलपमेंट की कहानी शुरू हो गई थी।

- यहां के रहने वाले बताते हैं कि 'मारुति प्लांट लगने से पहले इस जगह को कोई नहीं जानता था। 1991 में आई आर्थिक मंदी के बाद इस जगह को इंडस्ट्री सेक्टर में पहचान मिली।
- इसके बाद ही मारुति कंपनी और गुड़गांव का विकास साथ-साथ होने लगा।
गुड़गांव के दो भाग हैं

- गुड़गांव के दो भाग हैं- डेवलप्ड और अनडेवलप्ड।
- गुड़गांव के एक एरिया का तेजी से विकास हो रहा है और दूसरे एरिया का विकास काफी धीरे हो रहा है।

- डेवलप्ड एरिया में मेट्रो और रैपिड मेट्रो जैसी सुविधाएं मिल रही हैं, तो दूसरे एरिया में सड़कें भी टूटी-फूटी हैं।

- हालांकि, पुराने गुड़गांव के लोग चुनाव के समय वोट करने में आगे रहते हैं, जबकि नए गुड़गांव के लोग इसमें पीछे ही रहते हैं।

- पुराने गुड़गांव के रहने वाले लोग बताते हैं कि गुड़गांव बाहरी लोगों को तो अपना लेता है लेकिन कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि वे लोग इस जगह को अपना नहीं मानते।