इंदिरा गांधी को हो गया था मौत का अंदेशा, ऐसी है उनकी हत्या के दिन की कहानी
30 अक्टूबर को भुवनेश्वर में दिए गया अंतिम भाषण और 31 अक्टूबर का पूरा घटनाक्रम।
इंदिरा गांधी को अपनी मौत का अंदेशा हो गया था? ओडिशा (तब उड़ीसा) की राजधानी भुवनेश्वर में अचानक उन्होंने लीक से हटकर जो भाषण दिया, उससे इस बात को बल मिलता है।
31 अक्टूबर को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। इस मौके पर nexa news बता रहा है 30 अक्टूबर को भुवनेश्वर में दिए गए अंतिम भाषण और 31 के पूरे घटनाक्रम के बारे में। भाषण से लोग रह गए थे हैरान...
- भुवनेश्वर में 30 अक्टूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने जो चुनावी भाषण दिया था। इस भाषण को उनके सूचना सलाहकार एच वाई शारदा प्रसाद ने तैयार किया था। भाषण के बीच में ही उन्होंने लिखा हुआ भाषण पढ़ने के बजाए दूसरी ही बातें बोलना शुरू कर दी थीं।
- उन्होंने कहा था "मैं आज यहां हूं। कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मजबूत करने में लगेगा। "
- उनके इस भाषण से लोग अवाक रह गए थे। खुद उनकी ही पार्टी के लोग नहीं समझ पाए थे कि आखिर इंदिराजी ने ऐसे शब्द क्यों कहे थे।
हत्या के बाद राजीव बने थे पीएम
- 9 नवंबर 1917 को जन्मी इंदिरा गांधी ने भारत को इंटरने पर नई पहचान दिलाई। किसी भी स्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली इंदिरा ने केवल इतिहास में खास जगह बनाई, बल्कि पाकिस्तान का बंटवारा करवाकर साउथ एशिया का नक्शा ही बदल डाला।
- उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन 1975 में इमरजेंसी लागू करने के फैसले को लेकर उन्हें भारी विरोध झेलना पड़ा था। वे 16 साल तक प्रधानमंत्री रहीं।
- वे भारत के उन चुनिंदा कद्दावर नेताओं में शुमार की जाती हैं जिन्होंने कड़े फैसले लेने से कभी परहेज नहीं किया। फिर चाहे वह इमरजेंसी लागू करने का फैसला हो या फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार का आॅर्डर। उन्होंने बता दिया था कि वह घुटने टेकने वालों में से नहीं हैं। इंदिरा की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे।
हत्यारे ने कहा- हमें जो करना था वो हमने कर लिया
- उड़ीसा में इलेक्शन कैम्पेन के बाद इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं। दूसरे दिन यानी 31 अक्टूबर की सुबह 9 बजे के करीब इंदिरा एक अकबर रोड की तरफ चल पड़ीं। तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है।
- गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था। ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ ड्यूटी पर खड़ा था।
- आगे बढ़ते हुए इंदिरा संतरी बूथ के पास पहुंची। बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने खुद नमस्ते किया। तभी बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से सरकारी रिवॉल्वर निकाली और इंदिरा पर एक गोली दाग दी। आसपास के लोग हैरान रह गए। अगले ही पल बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट पर मारी। इसके बाद वे जमीन पर गिर गईं।
- अचानक संतरी बूथ पर खड़े सतवंत ने स्टेनगन से एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरु कीं। एक मिनट के अंदर ही उसने अपनी स्टेनगन की पूरी मैगजीन इंदिरा पर खाली कर दी। 30 गोलियों से इंदिरा का शरीर छलनी करके रख दिया।
- तभी बेअंत सिंह ने आर के धवन की ओर देखकर कहा- "हमें जो करना था वो हमने कर लिया। अब तुम जो करना चाहो, वो करो।" उस वक्त पास खड़े एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट ने तुरंत बेअंत और सतवंत को पकड़ लिया। उनके हथियार जमीन पर गिर गए। उन्हें तुरंत पास के कमरे में ले जाया गया।


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