जानिए आजादी से पहले की जहांपनाह दिल्ली के बारे में
दिल्ली का नाम कई बार बदला है। जो भी यहां आया अपने हिसाब से नाम रखता गया। इससे पहले भारत की राजधानी भी कोलकाता थी लेकिन 1911 में दिल्ली को राजधानी बनाया गया।
दिल्ली को आज पूरी दुनिया में दिल्ली के नाम से ही जाना जाता है।
लेकिन इसके नाम की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जो भी यहां आया वह अपने हिसाब से उसका नाम रखता गया। आज की दिल्ली का एक नहीं दो नहीं बल्कि 8 बार इसका नाम बदला है।
पहली दिल्ली का नाम लाल कोट (1000) रखा गया। दूसरी दिल्ली का नाम सिरी (1303), तीसरी दिल्ली का नाम तुगलकाबाद (1321), चौथी दिल्ली का नाम जहांपनाह (1327), पांचवी दिल्ली का नाम फिरोजाबाद (1354), छठीं दिल्ली का नाम पुराना किला (1533), सातवीं दिल्ली का नाम शाहजहांनाबाद (1639) और आठवीं दिल्ली का नाम नई दिल्ली (1911) था जिसे अंग्रेजों ने बसाया।
14वीं सदी की दिल्ली में रिज एक घना जंगल होती थी, जिसे अंग्रेजों के जमाने में साफ करके बगीचों में बदला गया। मुगलकालीन दिल्ली में जंगली शिकार के लिए इसका इस्तेमाल होता था जिसे जहांनुमा कहते थे।
आजादी के बाद इसका नाम जवाहरलाल नेहरू की पत्नी के नाम पर कमला नेहरू रिज रखा गया। रिज के जंगल का क्षेत्र पालम से मालचा तक दो हिस्सों में बंटा हुआ था। सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के कुशक (शिकारगाह-आरामगाह) से प्रेरणा लेकर अंग्रेज वास्तुकार लुटियन ने नई दिल्ली में कुशक रोड बनाई थी जो आज भी इसी नाम से मौजूद है।
1883 के अंत तक दिल्ली में असमान, भूमि, जलधाराओं और यमुना नदी में गिरने वाले नालों का वर्णन है। दिल्ली के भूदृश्य में गड्डे और निचली जमीन थी जहां पानी झील के रूप में जमा रहता था, जहां पशु-पक्षी एकत्र होते थे, महिलाएं घड़ों में तो भिश्ती अपनी मश्कों में पानी भरते थे।
ऐसी ही एक झील, नजफगढ़ की झील थी जबकि पानी का एक बड़ा स्रोत ताल कटोरा यानी कटोरे के आकार का तालाब था। जहां कुएं थे उनके नाम उसी पर पड़ गए। लालकुंआ और धौला कुंआ ऐसे ही नाम हैं।
17वीं सदी में मुगल शहर शाहजहांनाबाद में अली मर्दन नहर, सदात खान नहर और महल यानी लाल किला में नहर-ए-बहिश्त जोड़ी गई। इतना ही नहीं, पुलों के नाम पर स्थानों के नाम रखे गए। तुगलक कालीन सतपुला, मुगल कालीन अठपुला और बारापुला का नामकरण उनके मेहराबों की गिनती के आदार पर किया गया था।
जब अंग्रेजों ने सन 1911 में कलकत्ता से दिल्ली अपनी राजधानी को स्थानांतरित किया तो उसे उन्होंने साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में प्रचारित किया था। पुराने जमाने में दिल्ली में यात्रियों और व्यापारियों की सुविधा के लिए अनेक सराय बनी थीं, जहां वे अपने जानवरों को बांधकर रात में आराम कर सकते थे।
शाहजहांनाबाद में इस तरह की सरायों के नाम थे जो आज भी हैं, जैसे युसूफ, शेख, बेर, काले खान, बदरपुर, जुलैना (औरंगजेब के बेटों की यूरोपीय शिक्षिका का नाम) जो जामिया नगर के पास स्थित है। शहर में चांदनी चौक के करीब एक खूबसूरत ढंग की इमारत में बनी सराय मुगल शहजादी रोशनआरां के नाम पर थी।
इस सराय का नाम लोकस्मृति से इसलिए मिट गया क्योंकि सन 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्जे के बाद उस जगह टाउन हॉल बनाया।
सन 1947 के बाद पाकिस्तान जाने वाले मुसलमान परिवारों की हवेलियों में पाकिस्तान से निकाले गए हिंदू परिवारों ने आकर डेरा जमाया। इन्होंने अपने नए ठिकानों का घर के साथ कामकाजी यानी दोहरा प्रयोग किया।
आजादी के तुरंत बाद भारत सेवक समाज की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इनका कटरों के रूप में वर्गीकरण किया गया और तब से उन्हें इसी नाम से पुकारा जा रहा है।
जब अंग्रेजों ने सन 1911 में कलकत्ता से दिल्ली अपनी राजधानी को स्थानांतरित किया तो उसे उन्होंने साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में प्रचारित किया था। अंग्रेजों ने इसे विंडसर प्लेस का नाम दिया।
इसी तरह इंगलैंड की तर्ज पर किंग जॉर्ज एवेन्यू और क्वींस एवेन्यू की नकल करते हुए किंग्स-वे और क्वींस-वे का नाम रखा गया। जिन्हें आजादी के बाद राजपथ और जनपथ का नाम दिया गया।
अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य की वैधता को साबित करने के लिए नई दिल्ली के सड़क मार्गों के नाम पूर्व भारतीय शासकों जैसे अशोक, पृथ्वीराज, फिरोजशाह, तुगलक, अकबर और औरंगजेब के नाम पर रखे. यहां तक कि अंग्रेजों ने फ्रांसिसी डुप्ले और पुर्तगाली अलबुकर क्यू के नाम भी सड़कों के नाम रखे।


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