Header Ads

पटौदी रियासत के नौवें नवाब थे ये क्रिकेटर, महल में पूर्वजों के पास है कब्र


मंसूर अली खान का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था। पटौदी की रियासत उनके पुरखों को तोहफे में मिली थी।

पूर्व क्रिकेटर एवं पटौदी रियासत के आखिरी नवाब रहे मंसूर अली खान पटौदी पटौदी रियायसत के नौवें नवाब थे। न सिर्फ मंसूर अली खान पटौदी, बल्कि इससे पहले उनके पिता भी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके थे। मंसूर की एक सड़क हादसे में आंख चली गई थी, बावजूद इसके उनका भारतीय क्रिकेट में योगदान भुलाया नहीं जा सकता।

 22 सितंबर को उनकी छठी पुण्यतिथि के मौके पर पटौदी के जीवन से आपको रू-ब-रू करवा रहा है। ये है पटौदी फैमली का हरियाणा कनेक्शन...

- मंसूर अली खान का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था। चूंकि उनके पुरखों को हरियाणा में पटौदी के नाम से जानी जाती रियासत तोहफे में मिली थी, इसलिए उनका यहां से गहरा नाता रहा है।

- मंसूर अली खान पटौदी के पुरखे सलामत खान सन् 1408 में अफगानिस्तान से भारत आए थे। सलामत के पोते अल्फ खान ने मुगलों का कई लड़ाइयों में साथ दिया था। उसी के चलते अल्फ खान को राजस्थान और दिल्ली में तोहफे के रूप में जमीनें मिलीं।

- 1917 से 1952 इफ्तिखार अली हुसैन सिद्दिकी, पटौदी रियासत के आठवें नवाब बने थे। पहले पिता इफ्तिखार अली खान भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे, फिर मंसूर ने 70 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी हासिल कर ली।

- 2011 में लंग इन्फेक्शन के कारण नवाब पटौदी की मौत के बाद बेटे सैफ अली खान की 10वें नवाब के रूप में ताजपोशी हुई। अब पोता तैमूर भी एक साल से ऊपर हो चुका है।

- साल 2011 में लंग इन्फेक्शन के कारण नवाब पटौदी की दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मृत्यु हो गई।

- नवाब परिवार का पटौदी पैलेस के नाम से महल है। मंसूर अली उर्फ नवाब पटौदी की मृत्यु के बाद उन्हें महल परिसर में ही दफनाया गया था। उनके अन्य पूर्वजों की कब्र भी यहीं आसपास है।

बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक रहे मंसूर अली खान

- भारत के बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक रहे मंसूर अली खान उर्फ नवाब पटौदी ने भारतीय टीम की ओर से 1963 से 1975 तक क्रिकेट खेला और इस दौरान उन्होंने कई परेशानियों का भी सामना किया, लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने क्रिकेट में अपना योगदान जारी रखा।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से खेलते थे क्रिकेट

- अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत में ही पटौदी का भीषण रोड एक्सीडेंट हो गया था, जिसमें उनकी एक आंख लगभग चली गई थी।

- बात साल 1961 की है, जब नवाब पटौदी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से क्रिकेट खेला करते थे। 1 जुलाई, 1961 को सुसेक्स के खिलाफ मैच में उन्होंने अपनी टीम के साथ मैदान में काफी मशक्कत की।

- दिन का खेल खत्म होने के बाद वह अपनी टीम के चार अन्य खिलाड़ियों के साथ ब्रिजटाउन में डिनर करने गए थे। इसके बाद पटौदी के कुछ दोस्त वॉक पर चले गए तो वहीं नवाब अपने दोस्त रॉबिन के साथ कार में सवार होकर घर के लिए निकल पड़े। इसी बीच उनके कार के सामने एक बड़ी कार आ गई और उससे जोर से धक्का लगने से नवाब पटौदी बुरी तरह से घायल हो गए।

चोट के 6 महीने बाद फिर की वापसी

- अपनी चोट के छह महीने बाद पटौदी ने भारत की ओर से इंग्लैंड के खिलाफ साल 1961 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण किया और मद्रास में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में शतक जड़ा। इस तरह भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ पहली सीरीज जीती।

- दाहिने हाथ के बेहतरीन बल्लेबाज नवाब पटौदी ने इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और टीम इंडिया के कप्तान बनने के बाद उन्होंने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

- उन्होंने अपने पूरे क्रिकेट करियर के दौरान 46 टेस्ट मैच खेले और 34.91 की औसत से 2,793 रन बनाए. इस दौरान उन्होंने 6 शतक लगाए। उनका उच्चतम स्कोर 203* नॉट आउट रहा।

- उनके बेहतरीन खेल को देखते हुए उन्हें साल 1964 में अर्जुन अवॉर्ड और साल 1966 में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया था।

ऑटोबायोग्राफी में लिखा-कैसे उबरे हादसे से

- उनकी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है, ‘मुझे इस बात पर शक होने लगा कि मैं विश्वविद्यालय के मैच में खेल पाऊंगा की नहीं। उस समय तक मुझे यह नहीं पता था कि मेरी आंख में चोट आई है, क्योंकि मुझे दर्द महसूस नहीं हो रहा था।

जब मेरी ब्रिटेन अस्पताल में आंख खुली तो मुझे बताया गया कि मेरी दाईं आंख का ऑपरेशन होना है। यह जानकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। एक्सीडेंट के दौरान विंडस्क्रीन से टूटकर निकला हुआ एक कांच का टुकड़ा मेरी आंख में घुस गया था और इसको निकालने के लिए ऑपरेशन करना बेहद जरूरी था।

 इसी बीच उस शहर के फेमस डॉक्टर को एक इमरजेंसी ऑपरेशन करने के लिए उनके घर से बुलवाया गया। उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की और अपना काम बढ़िया तरीके से निभाया, लेकिन कुछ दिनों के बाद मुझे पता चला कि उस आंख का मेरा लेंस काम नहीं कर रहा है. उस समय तक विज्ञान उतना विकसित नहीं हुआ था

इसलिए मुझे अपनी एक आंख से हाथ धोना पड़ा, लेकिन एक आंख विशेषज्ञ ने मुझे कॉन्टेक्ट लेंस के सहारे क्रिकेट खेलने की सलाह दी, जिसकी सहायता से मैं 90 प्रतिशत विजन को प्राप्त कर पाया। सिर्फ एक चीज में मुझे समस्या आती थी कि इस लेंस के माध्यम से एक नहीं बल्कि दो-दो वस्तुएं नजर आती थी।’