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शवों को खुले में छोड़ना, अग्नि की पूजा करना, कुछ ऐसी हैं पारसियों की परंपराएं


दुनिया की सबसे समृद्ध कही जाने वाली पारसी कम्युनिटी 17 अगस्त को अपना न्यू ईयर 'नवरोज' मना रही है। बताया जाता है कि करीब एक हजार साल पहले ईरान में अरब हमलावरों की वजह से पारसियों को भागना पड़ा। जिसके बाद पारसी कम्युनिटी के लोग भारत, अमेरिका और ब्रिटेन में बसे। भारत में भले ही आज ये कम्युनिटी सबसे समृद्ध है, लेकिन आज इनकी तादाद बेहद कम रह गई है। पारसी न्यू ईयर के मौके पर हम आपको बता रहा है पारसी कम्युनिटी से जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट्स। मृत्यु के बाद टावर में डाल देते हैं शव..
- पिछले करीब तीन हजार वर्षों से पारसी धर्म के लोग दोखमेनाशिनी नाम से अंतिम संस्कार की परंपरा को निभाते आ रहे हैं।

- इस परंपरा को निभाने के लिए ये लोग पूर्णत: गिद्धों पर ही निर्भर हैं। इस परंपरा के तहत एक टावर में शव डाल दिया जाता है। यहां गिद्ध उस शव को नष्ट करते हैं।
करते हैं आग की पूजा

- पारसी कम्युनिटी के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो 'आहुरा माज्दा' कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुस्ट की शिक्षाओं को मानते हैं।
- पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।

दूसरी कम्युनिटी में शादी करने पर पाबंदी
- अगर एक पारसी महिला अपने समुदाय से बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह करती है तो उसके बच्चों को पारसी लोगों के पूजा स्थल या अंतिम संस्कार की जगह 'टावर्स ऑफ साइलेंस' में जाने की अनुमति नहीं मिलती।

बेहद अमीरों में होती है गिनती
पारसियों के बारे में कुछ बातें जो प्रचलित हैं वो ये कि वो बेहद अमीर होते हैं, उनके पास विंटेज गाड़ियां होती हैं और वो बेहद बड़े घरों में रहते हैं। वाडिया, टाटा, गोदरेज जैसे अमीर घराने पारसी कम्युनिटी से ही हैं।

भारत में मुंबई से सबसे ज्यादा पारसी
- भारत में अधिकांशत: पारसी महाराष्ट्र के मुंबई शहर में ही रहते हैं, जो टावर ऑफ साइलेंस पर अपने संबंधियों के शवों का अंतिम संस्कार करते हैं।

दूध के लोटे में चीनी डालने पर मिली थी पारसियों को भारत में शरण
- ईरान में अरब हमलावरों से बचकर पारसी गुजरात पहुंचे और राजा जादव राणा से शरण मांगी तो उन्होंने इनकार कर दिया।

- एक-दूसरे की भाषा से अनजान गुजराती और पारसी संकेतों की भाषा में ही बात कर सकते थे। वजीर ने पारसियों के सरदार के सामने दूध से भरा हुआ लोटा रखकर यह बताने की कोशिश की कि उनके पास उन्हें शरण देने की जगह नहीं है।

- पारसियों के मुखिया ने दूध के लोटे में चीनी डालकर यह समझाने की कोशिश की कि जिस प्रकार दूध में चीनी घुल-मिल जाती है उसी प्रकार वे भी गुजराती समुदाय में घुल-मिल जाएंगे। राजा उनके तर्क से प्रभावित हुए और उन्हें शरण दे दी।

लेट शादी और बच्चे पैदा करने में कम झुकाव
- हर साल मुंबई में करीब 850 पारसी लोगों की मृत्यु होती है और उसके मुकाबले सिर्फ 200 बच्चों का जन्म।

- इस अंतर के पीछे सबसे बड़ी वजह ये बताई जा रही है कि ज्यादातर खूब पढ़े,लिखे और समृद्ध परिवेश से आने वाले पारसी लोगों का शादी करना और बच्चे पैदा करने की तरफ कम झुकाव होता है।

- यही कारण है कि अब खुद भारत सरकार तेजी से बढ़ती हुई देश की कुल आबादी के बावजूद पारसी लोगों की सीमित होती संख्या पर खास ध्यान दे रही है।