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कुछ ऐसे दिखते थे हमें आजादी दिलाने वाले: 10 असली और Rare Pics


देश जब 71वां स्वतंत्रता उत्सव मना रहा है तो आइए एक नजर उन शहीदों पर डालते हैं जिनके लिए बलिदान ही सबसे बड़ा उत्सव था।

भारत को आजाद हुए पूरे 70 साल हो गए हैं। पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों की गुलामी के 400 सालों का इतिहास अब लोग भूलने लगे हैं। नए दौर में चीजें तेजी से बदल रही हैं और नए किरदारों, नए नायक सामने आ रहे हैं।

 इस माहौल में नेक्सा न्यूज़  की एक कोशिश है कि हम उन अमर शहीदों और नेताओं को कभी न भूले जिन्होंने हर तरह का बलिदान देकर आजाद भारत के सपने को पूरा किया।

देश जब 71वां स्वतंत्रता उत्सव मना रहा है तो आइए एक नजर उन शहीदों पर डालते हैं जिनके लिए बलिदान ही सबसे बड़ा उत्सव था।​

फेलिस ग्रीस के कोर्रफू नामक शहर से भारत घूमने आए थे। ये 1870 के बाद का दौर था जब कैमरा खुद विकसित हो रहा था।

 उन्होंने सबसे पहले 1855 में यूक्रेन में क्रीमिया की लड़ाई को तस्वीरों में उतारा था। वे युद्ध के मैदान की तस्वीरें उतारे वाले दुनिया के पहले फोटोग्राफरों (वॉर फोटोग्राफर) में से एक थे।

- बीटो पानी के जहाज पर सवार होकर कोलकाता आए। उस समय 1857 के विद्रोह और हिंसा को खत्म हुए कुछ महीने ही हुए थे। बीटो बंगाल से घूमते-घूमते वे दिल्ली पहुंचे थे।

उन्होंने दिल्ली के लगभग हर इलाके, लखनऊ और उत्तर भारत के शानदार फोटो उतारे। 1857 के गदर के बाद लखनऊ में दो बागी सिपाहियों को सरेआम फांसी का उनका उतारा फोटो कालजयी है।


- उन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग में दफना दिए गए भारतीय विद्रोहियों के शव खोदकर निकलवाए ताकि अपनी फोटोज़ को बेहतर ढंग से उतार सकें। बीटो इतने जबर्दस्त पर्यटक थे कि इतिहासकार और फोटोग्राफी के शौकीन लोग आज भी उनकी कहानियां याद करते हैं।

 भारत के बाद वे चीन गए जहां अफीम युद्ध चल रहा था उसके बाद उन्होंने जापान में जाकर फोटोग्राफी की।

14 अगस्त 1947 के दिन आजाद भारत की घोषणा से पहले पत्रकारों से रूबरू होते पंडित नेहरू, किसी एक सवाल पर इतने परेशान हो गए कि कुछ पलों के लिए सिर पर हाथ रखकर सोचने लगे।

29 मई 1927 शहीद भगत सिंह का एकमात्र और अंतिम फोटो जिसमें वे नंगै पैर बेड़ियां पहने लाहौर रेलवे पुलिस स्टेशन में बैठे हैं। लाहौर बम धमाके के आरोप में पकड़े गए भगत चेहरे पर हल्की हंसी थी और वे CID लाहौर के डीएसपी गोपाल सिंह पन्नू से बात कर रहे थे।

1940 में ट्रेन के सैकंड क्लास के डिब्बे में बैठे बापू के हाथ में सिक्कों का दान देता एक शख्स, पीछे खिड़की में उनके सहयोगी रहे आचार्य कृपलानी (बाएं) और बजाज समूह के पितामह राधाकृष्ण बजाज  नजर आ रहे हैं।

2 जुलाई 1943, आजाद हिंद फौज की महिला ब्रिगेड रानी झांसी रेजिमेन्ट का निरीक्षण करते नेताजी सुभाष चंद्र बोस, साथ हैं कैप्टन लक्ष्मी सहगल।

मद्रास कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाली लक्ष्मी 29 साल की उम्र में सिंगापुर में नेताजी से पहली बार मिली और मात्र एक घंटे की मुलाकात के बाद बाकी जीवन भारत के नाम समर्पित कर दिया था।

कांग्रेस की एक मीटिंग में भाग लेने के लिए हाथ पकड़े जाते पंडित नेहरू और खान अब्दुल गफ्फार खान। ठीक उसी समय बाजू से हाथ गाड़ी में बैठकर आते सरदार पटेल जो दोनों नेताओं को एक नजर देख ठिठक जाते हैं।

 आजादी मिलने के बाद वो सरदार पटेल की कूटनीति थी कि भारत की 560 से ज्यादा रियासतों का भारत संघ में विलय हो सका। पटेल ताश का खेल ब्रिज खेलने के शौकीन थे और एक समय वे गुजरात क्लब में इस खेल के चैंपियन रहे थे।

लॉर्ड माउंटबेटन और एडिवना की मौजूदगी में 14 अगस्त की शाम को पाकिस्तान के पहले गर्वनर जनरल पद की शपथ लेते मुहम्मद अली जिन्ना। ये कार्यक्रम लाहौर हाईकोर्ट में हुआ था और कैबिनेट में जिन 6 सदस्यों को जगह मिली थी उनमें एक हिंदू जोगिंदर नाथ मंडल भी थे।

सितंबर 1944, मुंबई स्थित जिन्ना हॉउस का जहां उनके और महात्मा गांधी के बीच अलग मुस्लिम देश के मुद्दे पर गरमा-गरम बहस का दृश्य। भारतीय इतिहास में इस बातचीत को 'वॉटरशेड टॉक्स ऑन द पार्टिशन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है।

2 जून 1947 को अखंड भारत का बंटवारा करने बैठे पंडित नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन, सरदार पटेल और मुहम्मद अली जिन्ना। सिरिल रेडक्लिफ की खींची लाइन पर देश बंट गया। जिस टेबल पर ये फैसला लिया गया वो आज शिमला के वॉयसराय लॉज में रखी है।

12 मार्च, 1930 में बापू ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का नमक सत्याग्रह मार्च निकाला था। इसी दौरान बापू की लाठी खींचते उनके पौत्र कनुभाई गांधी। कनुभाई बेहतरीन फ़ोटोग्राफ़र और नासा के पूर्व वैज्ञानिक थे। उनका नवंबर 2016 में निधन हो गया।