ये थे इंडियन खुफिया एजेंसी 'रॉ' के जासूस, अब इस हालत में गुजर रही जिंदगी
भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करने वाले सीमावर्ती गांव माड़ी मेघा निवासी ठाकुर सिंह (85) आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। विशेष बातचीत में ठाकुर सिंह ने जहां आपबीती सुनाई, वहीं अपनी इस स्थिति के लिए गवर्नमेंट को भला-बुरा भी कहा। बता दें कि ठाकुर सिंह की पत्नी अब लोगों के घरों के बर्तन साफ करके अपने घर का खर्चा चलाने को मजबूर है।
ठाकुर सिंह को पाकिस्तान में एक साल जासूसी करने के बाद उन्हें वहां की इंटेलिजेंस ने पकड़ कर कोट लखपत जेल में बंद कर दिया था।
- वहां उन्हें 12 साल तक नजरबंद रखा गया, लेकिन उस दौरान भी गवर्नमेंट ने ठाकुर सिंह का हाल तक नहीं पूछा।
- ठाकुर सिंह ने बताया कि देश के बंटवारे से पहले उनका घर धनौडा (लाहौर) में था। जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वह 9 साल की उम्र में भारत आ गए थे।
- समय गुजरने के बाद फिर किसी मामले में खालड़ा पुलिस (अमृतसर) उन्हें थाने ले गई और उन्हें फिर पाकिस्तान जाकर जासूसी करने को कहा।
पाकिस्तान से एजेंसी ने अखबार मंगाया था
- 1975-76 में उन्होंने देश के लिए जासूसी की थी। 1975 में जासूसी के दौरान रॉ ने उनसे 'जंग' अखबार मंगवाया था।
- ठाकुर सिंह ने बताया कि 1977 में जनवरी महीने में पाकिस्तान में रेलवे स्टेशन से पाक इंटेलिजेंस ने उन्हें दबोच लिया था।
- इसके बाद उन पर केस चलाया गया और 2 साल उन्हें अंडर आर्मी में कैद रखा, जिसके बाद कोट लखपत जेल में नजरबंद कर उन्हें टॉर्चर किया गया।
- इस दौरान उनकी दायीं टांग और एक हाथ की उंगलियां तोड़ दी गई थीं।
1988 में पाक ने 51 कैदियों को रिहा किया
- ठाकुर सिंह ने बताया कि 1988 में भारत-पाक ने एक-दूसरे के कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया था।
- इस दौरान पाक ने 51 भारतीय कैदियों को रिहा किया था, जिनमें वो भी शामिल थे। जब वे घर लौटे तो फैमिली में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
- ठाकुर सिंह ने जब पत्नी छिंदो से पूछा कि गवर्नमेंट और एजेंसी ने कोई सहायता की, तो उन्होंने कहा कि उनके जाने के बाद किसी ने हाल नहीं पूछा।
कच्चे घर में रहने को मजबूर, सरकार से सहायता मांगी
- दर्दभरी आवाज में ठाकुर सिंह ने कहा कि वह कच्चे घर में रहने को मजबूर हैं। उनकी एक आंख की रोशनी भी चली गई है।
- पत्नी छिंदो ने लोगों के घरों मेंं बर्तन साफ कर बच्चों को पाला, आज भी वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।
- उन्होंने सरकार से मांग की कि उसके घर की गरीबी को देखते हुए उन्हें आर्थिक सहायता के साथ-साथ परिवार के एक मेंबर को सरकारी नौकरी दी जाए।

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