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बाबा महाकाल की पहली सवारी निकली, ऐसा है पालकी से जुड़ा इतिहास


 बाबा महाकाल सावन के पहले सोमवार को नगर का हाल जानने निकले। महाकालेश्वर की सवारी शाम 4 बजे मंदिर से रवाना हुई और शाम बजे रामघाट पहुंची जहां बाबा का क्षिप्रा के जल से अभिषेक किया गया। बाबा की सवारी के देखे हुए इस मार्ग पर वाहनों का आवागमन को बंद कर दिया गया था। पुजारियों के अनुसार आजादी के 12 साल पहले बाबा महाकाल की सवारी लकड़ी के पालकी पर निकलती थी, जिसका स्वरूप समय के साथ बदलता गया।
- पहले सोमवार पर मंदिर में दर्शन के लिए अलसुबह से श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया गया। गर्भगृह में प्रवेश बंद होने से भक्तों ने नंदी हाल से लगे बेरिकेड्स से ही बाबा को निहारा। कलेक्टर संकेत भोंडवे ने कहा है कि दिव्यांग और वृद्धों से लेकर सभी श्रद्धालुओें के लिए सुलभ दर्शन व्यवस्था की गई है। सवारी के दौरान भी श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखा गया है।

सदियों पुरानी है परंपरा
महाकाल के पुजारी के अनुसार भगवान महाकाल की सवारी की ये परंपरा सदियों पुरानी है। ये माना जाता है कि महाकाल उज्जैन के राजा है और जिस तरह से राजा अपनी प्रजा के हालचाल जानने निकलता है ठीक वैसे ही महाकाल भी सवारी के रूप में अपनी प्रजा का हाल जानने निकलते हैं। सावन और भादौ के बाद एक बार कार्तिक माह में भगवान की सवारी निकलती है