इस पत्थर को ढूंढती हैं प्रेग्नेंट महिलाएं, इसके पानी से नहीं होता लेबर पेन
हर महिला की इच्छा होती है कि शादी के बाद वो भी मां बने और उसका आंगन बच्चे की किलकारियों से गूंजे, लेकिन यह भी सच है कि हर महिला लेबर पेन के बारे में सोचकर ही कांप उठती है। ऐसे में महिला को कम-से-कम दर्द हो, इसके लिए तरह-तरह की कोशिशें भी परिजनों द्वारा की जाती हैं। कुछ इसी तरह की कोशिशों के तहत राजस्थान में प्रेग्नेंट महिला को एक खास तरह के पत्थर का पानी पिलाया जाता है। यह बात भले ही लोगों को अजीब लगे, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस पत्थर को पानी में डालकर उस पानी को पीने से प्रेग्नेंट महिलाओं को लेबर पेन नहीं होती और बच्चा सही वक्त पर जन्म लेता है।
प्रतापगढ़ से 25 किलोमीटर दूर वाल्मीकि का आश्रम है। यह जगह सीतामाता वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के तौर पर देशभर में मशहूर है। लाेक मान्यता है कि आदिकवि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था। यह वही जगह है, जहां माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था और यहीं अवध के राज्य से वे वाल्मीकि आश्रम में पहुंची थीं।
मान्यता है कि जब सीता माता ने धरती की गोद में समा लेने की प्रार्थना की थी तो उस समय धरती फटी और माता सीता उसमें समा गई। तब यह पूरी जगह कांप उठी और यहां कई वाटर सोर्स फूट पड़े थे। उन्हीं में से एक वाटर सोर्स वाल्मिकी आश्रम के पास आज भी मौजूद है। इसके नीचे पत्थरों पर लाल रंग की परतें जम गई हैं। बताया जाता है कि माता सीता यहां स्नान के बाद अपनी मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगाया करती थीं।
इसी विश्वास के साथ बड़ी तादाद में महिलाएं यहां आती हैं और पानी में से ऐसे पत्थर तलाशती रहती हैं, जिन पर लाल-सिंदूरी आभा होती है। पानी में से पत्थर निकालने के बाद यहीं पर महिलाएं इसकी पूजा करती हैं और पालने में लव-कुश को झूला झुलाती हैं। फिर पत्थरों को अपने घर ले जाती हैं। प्रेग्नेंट महिला को पानी में पत्थर हिलाकर पिला दिया जाता है। इसी मान्यता के कारण यहां उस चमत्कारी पत्थर की तलाश में दूर-दूर से महिलाएं आती हैं।
सीतामाता अभ्यारण्य दुर्लभ जड़ी-बूटियों का खजाना
सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य में लगभग 800 तरह की वनस्पतियां हैं। इनमें से तो कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं जो सिर्फ इसी जगह पर मिलती हैं। यहां कर्मोही और जाखम प्रमुख नदियां हैं जो 12 महीने बहती रहती हैं। यहां सालभर बहने वाले पहाड़ी सोते और नाले हैं। मुमकिन है जड़ी-बूटियों का असर यहां के जल में और पत्थरों में भी मौजूद हो।
वागड़ और मेवाड़ की महिलाओं का दावा है कि पत्थर को पानी में डालने से पानी में औषधीय गुण आ जाते हैं और उसे ग्रहण करने से लेबर पेन नहीं होती। यहां तक कि डिलिवरी के लिए ऑपरेशन की भी जरूरत नहीं होती है।
विज्ञान नहीं मानता पत्थर का चमत्कार
हालांकि, डॉक्टर इन सभी मान्यताओं को बेबुनियाद बताते हैं। उनका कहना है कि इस प्रकार का कोई चमत्कारी पत्थर नहीं होता, जिससे लेबर पेन नहीं होता हो।
डॉक्टरों के मुताबिक, जो ग्रामीण महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान जिनमें कैल्शियम की कमी होती है, डॉक्टर्स तक नहीं पहुंचती हैं वे अक्सर गांवों में पत्थर और मिट्टी खाती हैं। इससे प्रेग्नेंसी के दौरान कैल्शियम की कमी पूरी हो जाती है, जिससे लेबर पेन कम होता है।


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