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जब मरने के लिए अपने 7 बच्चों को रानी ने दिया था अफीम का ओवरडोज


 खुसरोबाग की ऐतिहासिक के साथ धार्मिक मान्यता भी है। यहां पर मुगल शासक जहांगीर की पत्नी मानबाई, बेटे शहजादा खुसरो और बहन सुल्तान निसार बेगम का मकबरा है। इन तीनों मकबरों के बीच में भी एक मकबरा है, जो जहांगीर की पत्नी शाह बेगम और उनके सात बच्चों का है। हम  यहां की ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता के बारे में बता रहा है।

मान बाई उर्फ शाह बेगम का उनके ७, बच्चों साथ मकबरा है। पति और बेटे खुसरो के बीच के झगड़े से तंग आकर मान बाई ने सन १६०३, में  ७, बच्चों के साथ अफीम का ओवरडोज लेकर खुदकुशी कर ली।
- मान बाई पंजाब के गर्वनर व अंबर के राजा भगवंत दास की बेटी व राजपूत मुखिया मान सिंह की बहन थीं। उनका विवाह सन १५८४, में मुगल शासक सलीम उर्फ जहांगीर से हुआ था।
- सन् १५८७, में शहजादे खुसरो का जन्म हुआ था। सन १६२२, में बुरहान में खुसरो की मौत हो गई थी। उन्हें भी यहीं लाकर दफना दिया गया था, मां के दाहिने तरफ खुसरो का मकबरा है।

 इलाहाबाद जंक्शन के पास स्थित खुसरोबाग करीब 64 एकड़ में फैला है, जिसकी दीवार २०, फिट ऊंची है।
- बगीचों के शौकीन मुगल शासक जहांगीर ने इसका निर्माण कराया था। जो १६०५, में शुरू हुआ और १६२७, में पूरा हुआ।
- यहां बने मकबरों का निर्माण १६०६,१६०७, ईसवी में किया गया था। जहांगीर के भरोसेमंद कारीगर अकारेजा ने तीन मंजिले मकबरों की नक्काशी की थी।
- इसमें अरीब में आयतें भी लिखी हुई हैं। इसके निर्माण में २२, साल लग गए थे।

३२, फीट ऊंचा और १६, फीट चौड़ा है मुख्य द्वार का फाटक
- हाथी-घोड़े से सवार खुसरो इस द्वार से अंदर प्रवेश करता था। सुरक्षा की दृष्टि से यहां ३२,फीट ऊंचा और १६, फीट चौड़ा फाटक बनाया गया था।
- सागौन की लकड़ी से निर्मित ये विशालकाय फाटक आज भी मौजूद है। पुरातत्व विभाग के लोगों का कहना है कि ये काफी जर्जर हो चुका है, भारी होने की वजह से जमीन में धंस गया है। ऐतिहासिक होने के चलते हम लोग नया भी नहीं लगा सकते हैं।

यहां पूरी होती थी मन्नत तो गेट पर लगाते थे घोड़े की नाल
- जानकारों की मानें तो यहां आने वाले लोग जो भी मन्नत मांगते थे वो जरूर पूरी होती थी। मन्नत पूरी होने पर इसके मुख्य द्वार के गेट पर घोडे की नाल ठोकने की परंपरा थी।
- यहां लगी घोड़े की नाल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहां की देख-रेख करने वाले कमलाकांत शुक्ला ने बताया, अब लोग नहीं आते। लेकिन पहले यहां आते थे और मन्नत पूरी होने पर गेट पर नाल ठोक जाते थे।
- कुछ लोग यहां से नाल उखाडक़र भी ले जाते थे और उसकी अंगूठी बनवाकर पहनते थे। अब तो लोग यहां से सिर्फ नाल उखाडक़र ले जाते हैं, ठोकता कोई नहीं।

क्या कहते हैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अफसर
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण सहायक अविनाश चंद्र त्रिपाठी यहां की सुरक्षा संरक्षा से लेकर साफ-सफाई की जिम्मेदारी संभालते हैं। ये बाग करीब ४००, साल पुराना है, जो मुगलों का आरामगाह होता था। इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है। यहां के मकबरों की नक्काशी काबिले तारीफ है।
- यहां लगा गेट भी इतने साल का ही पुराना है, जो अब जर्जर हो चुका है। आजादी के समय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से बचने के लिए इसका प्रयोग किया था।