Header Ads

ये हैं मलाइका, बताई- अपनी खूबसूरती और दिल में छुपे दर्द की ये कहानी


हम अकसर कह देते हैं कि किन्नरों का जीवन तो बेहद आसान है। लड़के की शादी हो या जन्म। घर-घर जाकर, दो ताली और दो ठुमके लगाकर

हम अकसर कह देते हैं कि किन्नरों का जीवन तो बेहद आसान है। लड़के की शादी हो या जन्म। घर-घर जाकर, दो ताली और दो ठुमके लगाकर ये बधाई ले लेते हैं। लेकिन क्या वाकई में ये आसान बात है? उनकी नजर से देखें तो शायद नहीं। किन्नरों ने चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक कांफ्रेंस अपनी लाइफ से जुड़ी कई बाते शेयर की। एक किन्नर हैं मलाइका वे कहती हैं कि सब मेरी सुंदरता पर कॉम्लीमेंट देते हैं, पर मैं यही कहती हूं कि शक्ल तो अच्छी है पर जन्म अच्छा नहीं।


-इन किन्नरों ने बताया कि अपना घर, मां-बाप और भाई-बहन को छोड़कर कोई भी दूर नहीं जाना चाहता।
- पर ये लोग अपना सब छोड़कर दूर कहीं डेरे में बसकर अपनी रोजी-रोटी के लिए बधाई लेते हैं।
- पर कई बार कुछ शरारती तत्व इनके लिए गले की हड्डी बन जाते हैं। समाज में बनी-बनाई इज्जत को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
- तब निश्चित रूप से इनके दिल पर गहरी चोट लगती हैं कि इतने साल समाज में रहकर हमने जो इज्जत कमाई, उसे ये लोग गवां रहे हैं।
- चंडीगढ़ प्रेस क्लब में शहर और आसपास रहने वाले किन्नरों ने अपनी समस्या को मीडिया के साथ शेयर किया और साथ ही बात की अपने बारे में।

कुछ बहरूपिए हमारा रूप धारण कर हमें बदनाम कर रहे हैं...

सेक्टर-26 स्थित किन्नर डेरे में रहने वाली कामिनी ने बताया कि वह लंबे अरसे से चंडीगढ़ में रह रही हैं। उन्हें शहरवासियों से कभी कोई दिक्कत नहीं आई। पर कुछ बहरूपिए हमारा रूप धारण कर लोगों से बधाई ले रहे हैं। वहीं शहर में कुछ बच्चे ऐसे हैं जो हमारे एरिया में घुसकर बधाई मांगते हैं। हमारी रोजी-रोटी मुश्किल में पड़ती है। कुछ शराब पीकर चले जाते हैं। ऐसे में हम बदनाम हो रहे हैं और इस संबंध में हमने तीन दिन पहले एसएसपी ऑफिस में शिकायत भी दी है। इसलिए हम चाहते हैं कि ऐसा कोई शरारती तत्व किसी के घर बधाई के लिए जाए तो शहर के लोग उनका आईडी प्रूफ जरूर देखें।

5 लड़कियों और एक लड़के को एडॉप्ट किया...

रीना देवी पाल यूं तो डेरा बस्सी के अंतर्गत आते गांव जौली से हैं। 1985 में इनके गुरु इन्हें रोपड़ स्थित अपने डेरे पर ले गए। उस वक्त रीना 12वीं क्लास में थीं। बताती हैं कि मेरी पांच बहनें और एक भाई है। मेरा सबसे प्रेम था। जब घर छोड़कर निकली तो आसान नहीं था। पर मुझे खुशी है कि आज भी मुझे सब उतना ही प्यार करते हैं। घर के अहम फैसलों में मेरी सलाह ली जाती है।
शादी-समारोहों में भी जाती हूं। मुझे सब कहते हैं गाड़ी वाली मौसी गई। रीना का नालागढ़ में भी एक डेरा है और ये वहां काउंसलर रह चुकी हैं। घनौली में इनकी एक गऊ-शाला है और इन्होंने पांच लड़कियों और एक लड़के को एडॉप्ट किया है। ये सब सामान्य बच्चे हैं। सबकी पढ़ाई का खर्च ये खुद उठाती हैं। लड़का लॉ कर चुका है।

स्कूल नहीं गई पर हिंदी-अंग्रेजी पढ़ सकती हूं...

मलाइका सेक्टर-25 में रहती हैं। इन्हें 17 साल शहर में हो गए हैं। यूं दिल्ली की रहने वाली हैं। बताती हैं कि छह महीने की थी जब मुझे मेरे घर से ले जाया गया। मैंने तो कभी अपने मां-बाप को भी नहीं देखा। अगर मुझे उनके बारे में पता चलता तो मैं उनसे मिलने जरूर जाती। बताती हैं कि मुझे सब मेरी सुंदरता पर कॉम्लीमेंट देते हैं। मैं यही कहती हूं कि शक्ल तो अच्छी है पर जन्म अच्छा नहीं। मलाइका कभी स्कूल नहीं गईं पर अंग्रेजी और हिंदी पढ़ लेती हैं। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी ने अब किन्नरों के लिए पूरी मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया है। 30 जुलाई अप्लाई करने की आखिरी तिथी है। इसपर मलाइका ने कहा कि अब मैं अपनी शिक्षा पूरी करूंगी।

एक बार आए थे मां बाप मिलने...

कामिनी 20 साल पहले चंडीगढ़ गई थीं। बताती हैं कि मैं किन्नर हूं, बचपन में ही पता चल गया था। पहले मैं मां-बाप के घर रही, फिर नाना-नानी और उसके बाद मुझे हॉस्टल भेज दिया गया। फिर मेरे गुरुजी मुझे ले आए। उन्होंने कहा कि अपने परिवार से अलग होना किसे अच्छा लगता है और मां तो वैसे भी मां होती है। कुछ साल बाद एक बार मेरे पेरेंट्स मुझे मिलने आए। पर मैं दोबारा कभी भी अपने घर नहीं गई। मुझे डेरे में ही काफी प्यार मिला। आज की पीढ़ी के किन्नरों के लिए क्या नसीहत है? इसपर कामिनी ने कहा कि हम चाहते हैं कि अब किन्नर पढ़-लिखकर जॉब करें और सामान्य जीवन जीएं। अगर किसी को हमारी मदद की जरूरत होगी तो हम जरूर करेंगे।