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खुद की सेफ्टी के लिए इस लड़की को साथ ले जाती हैं Girls, ये है इसकी वजह





जब भी 18 साल की भाविका अपनी कॉलोनी में निकली हैं तो मनचलों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। अब भाविका को न ही कोई मनचला कुछ बोलता है और न ही फब्तियां कसने की कोशिश करता है। वे आजादी के साथ खुशी-खुशी कॉलेज जाती हैं और वहां से घर आती हैं। बीए सेकेंड की छात्रा भाविका की क्लासमेट्स भी इनके साथ खुद को सेफ महसूस करती हैं। कभी रात में कहीं शादी या पार्टी में जाना हो तो भाविका को साथ ले जाना नहीं भूलती हैं।





हाल ही में थाईलैंड के हांगकांग में आयोजित हुए थाई ओपन इंटरनेशनल ताइक्वांडो चैम्पियनशिप में 17 देशों के 2100 प्रतिभागियों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई है। वे फाइनल मुकाबला जीत तो नहीं सकीं, लेकिन श्रीलंका, थाईलैंड , चाइना हांगकांग, यूएसए, बंगलादेश के खिलाड़ियों को हराकर फाइनल पहुंचकर अपनी अलग पहचान जरूर बना ली।


- अब भाविका काठमांडू नेपाल व श्रीलंका में आयोजित होने वाली इंटरनेशनल चैम्पियनशिप की तैयारी में जुट गई है। थाई ओपन इंटरनेशनल ताइक्वांडो चैम्पियनशिप के जो थिटी पोंग ने भाविका के खेल की प्रशंसा की।

 भाविका ने  बताया कि वर्ष 2010 में स्कूल के समर कैंप में ये गईं थीं।


- तब ताइक्वांडो सिखाया जा रहा था। इन्हें ये गेम अच्छा लगा और आखिरकार इसमें ही इन्होंने अपना कॅरियर चुन लिया।


- भाविका के मुताबिक इस गेम ने इन्हें अलग पहचान ही नहीं दिलाई बल्कि सेल्फ कॉन्फिडेंस भी दिया।


- इन्हें अब दूसरी लड़कियों की तरह डरने और किसी की सिक्योरिटी की जरूरत महसूस नहीं होती है।
- भाविका ने बताया कि ऐसे मौके भी आए जब इन्हें खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए सीखे गए दांव-पेंच को आजमाने पड़े और इसका रिजल्ट ऐसा इंपैक्टफुल रहा कि अब इनकी दोस्त भी इन्हें साथ लेकर चलना पसंद करती हैं।


- भाविका की मानें तो हर लड़की को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग जरूर लेनी चाहिए। उन्हें खुद को असहाय महसूस कराने की बजाय मजबूत बनाना चाहिए।



भाविका ने बताया कि पहले तो मां ने इस खेल में जाने का विरोध किया और बोलीं कि ये खतरनाक खेल है। लड़कियों के लिए नहीं है।


- वहीं जब पिता ने इनका सपोर्ट किया और ये आगे बढ़ीं तो मां की भी उम्मीदें जाग गईं। फिर उनका भी भरपूर सहयोग मिला।