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3 मिनट में हो रही थी 1 मौत, जानें क्या हुआ था उस रात


2 से 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी काली रात। जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस के रिसाव ने समूचे शहर में मौत का तांडव मचा दिया। कार्बाइड के प्लांट नंबर सी के टैंक-610 से रिसाव हो रहा था। ये जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइड के गुबार को जैसे-जैसे हवा के झोंके बहाकर ले जा रहे थे, वैसे-वैसे लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। भोपाल गैस त्रासदी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है। अधिकांश लोग नींद में ही मौत का शिकार बने। मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसतन तीन मिनट लगे।

-भोपाल गैस ट्रेजेडी का ये 33वां साल है। इस मौके पर nexa news अपने पाठकों को बताएगा कि उस भयानक रात को क्या हुआ था। सरकारी के आंकड़ों में 3 हजार लोग मौत की नींद सो गए थे, गैर आधिकारिक रूप से यह आंकड़ा 20 हजार से भी ज्यादा है।

-आधी रात के बाद सुबह फैक्टरी से निकली ज़हरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं। आसमान में गैस रिसाव के कारण धुंध ही धुंध छा गई थी, जिससे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में लोग समझ नहीं पा रहे थे किधर भागना है, किस रास्ते जाना है।

-उस सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे। और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे।
-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे। हालांकि, गैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब 4 गुना ज़्यादा थी।

-इस दुर्घटना के शिकार लोगों की संख्या 20 हजार तक बताई जाती है। क्योंकि मौत का सिलसिला बरसों तक चलता रहा। यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। हालांकि गैस रिसाव के आठ घंटे बाद भोपाल को जहरीली गैसों के असर से मुक्त मान लिया गया था। परंतु 1984 में हुए इस हादसे से अब भी यह शहर उबर नहीं पाया है।

-टैंक नंबर-610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में पानी से मिल गया था। इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और रिसाब शुरू हो गया।
-सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती। वहां हादसे का शिकार हुए वे लोग जो रोजी-रोटी की तलाश में दूर-दूर के गांवों से आ कर वहां रहते थे।
-ऐसे किसी हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था। यहां तक कि कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा था।

-शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह नहीं थी।
-वहां आए लोगों में कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सब को थी।
-एक अनुमान के अनुसार पहले दो दिनों में करीब 50 हजार लोगों का इलाज किया गया।
-हांफते और आंखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुंचे तो उनका क्या इलाज किया जाए, ये डॉक्टरों को मालूम ही नहीं था।