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50 कुंओं के ऊपर बना है ताज महल, यमुना न होती तो कुछ भी न होता




योगी आदित्यनाथ 26 अक्टूबर को आगरा में हैं। सीएम बनने के बाद ये उनकी दूसरी विजिट है। वे यहां कुछ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स का शि‍लान्यास करेंगे। बता दें, ताज पर पिछले कुछ दिनों से बयान बाजी चल रही है। इतिहासकार राजकिशोर राजे से बातचीत के आधार पर ताज महल से जुड़े 16 इंटरेस्टिंग फैक्ट्स रिकॉल करा रहा है। उन्होंने बताया कि 50 कुंओं के ऊपर ताज महल बना है। यही नहीं, शाहजहां से नाराज होकर मजदूरों ने जानबूझकर ताज में एक बड़ी गलती की।

ताजमहल का आधार एक ऐसी लकड़ी पर बना हुआ है, जिसे मजबूत बनाए रखने के लिए नमीं की जरूरत होती है। ये काम पास में बहने वाली यमुना नदी करती है।



ताज महल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर सोने का कलश लगवाया था। इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच लंबी थी। कलश में 40 हजार तोला (466 किलोग्राम) सोना लगा था। ताज महल का कलश 3 बार बदला गया। आगरा के किले को साल 1803 में हथियाने के बाद से ही अंग्रेजों की नजर ताज महल पर थी।



ताज महल के मुख्‍य स्‍मारक के एक तरफ लाल रंग की मस्जिद है और दूसरी तरफ मेहमानखाना। ब्रिटिश शासन के दौरान मुख्‍य स्‍मारक के बगल का मेहमानखाना किराए पर दिया जाता था। इसमें नवविवाहित अंग्रेजी जोड़े आते थे। उस वक्त इसका किराया काफी महंगा था। ताज महल के मेहमानखाने की पहली मंजिल पर पहले दीवारें बंद नहीं थीं। अंग्रेजों के समय में इसमें दीवारें जोड़ी गईं और उन्हें कमरों में तब्‍दील कर दिया गया था। इसे अंदर से बेहद खूबसूरत बनाया गया था।



ताज महल में शाहजहां और मुमताज की कब्र के ठीक ऊपर खूबसूरत लैंप टंगा हुआ है। ये लैंप मिस्त्र के सुल्‍तान बेवर्सी द्वि‍तीय की मस्जिद के लैंप की नकल है। इसे तैयार करवाने में 108 साल पहले 15 हजार रुपए खर्च हुए थे। इससे पहले यहां धुएं वाला लैंप जलता था। इससे पूरे मकबरे में धुआं भर जाता था। तत्‍कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन जब 18 अप्रैल, 1902 को आगरा आए थे। उस वक्‍त जब वह मकबरे में गए तो वहां धुएं से उन्‍हें काफी परेशानी हुई।




ऐसा कहा जाता है कि ताज महल के निर्माण के वक्‍त भूत-जिन्‍न नींव को ध्‍वस्‍त कर देते थे। वो ताज की बुनियाद रखने नहीं देते थे और करीगरों को डराकर भगा दिया करते थे। उन्हें वहां से भगाने के लिए शाहजहां को इमामों ने अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत अहमद बुखारी को बुलाने का सुझाव दिया था। बादशाह के बुलावे पर पीर अपने साथ भाई सैय्यद जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह और सैंकड़ों सहायकों के साथ आगरा आए। शाहजहां सभी पीर बाबाओं को लेने खुद गए थे। चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताज महल के नींव परिसर पर पहुंचकर कुरान और कलमों का पाठ करवाया था। इसके बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर ताज महल को बनवाने का काम शुरू करवाया गया। तब कहीं जाकर मोहब्बत की ये निशानी बनकर तैयार हो सकी। इन चारों पीर भाइयों की मजार ताज महल के चारों तरफ बनी हैं। माना जाता है कि जब तक ये मजार यहां हैं ताज महल को कभी कुछ नहीं होगा।




मुमताज के मकबरे की छत की छेद से टपकते पानी की बूंद के पीछे कई कहानियां फेमस हैं, जिसमें से एक ये है कि जब शाहजहां ने सभी मज़दूरों के हाथ काट दिए जाने की घोषणा की ताकि वे कोई और ऐसी खूबसूरत इमारत न बना सकें तो मजदूरों ने इसमें एक ऐसी कमी छोड़ दी, जिससे शाहजहां का खूबसूरत सपना पूरा न हो सके।



द्वितीय विश्व युद्ध, 1971 भारत-पाक युद्ध और 9/11 के बाद इस भव्य इमारत की सुरक्षा के लिए ASI ने ताजमहल के चारों ओर बांस का सुरक्षा घेरा बना कर उसे हरे रंग की चादर से ढक दिया था। इससे ताजमहल दुश्मनों को नजर न आए और इसे किसी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके।




आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए मोहब्बत की इस निशानी को बेच दिया था। वो ताज महल तोड़कर इसके कीमती पत्थरों को ब्रिटेन लेकर जाना चाहते थे। बाकी संगमरमर के पत्थरों को बेचकर सरकारी खजाना भरने की फिराक में थे। साल 1828 में तत्‍कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने कोलकाता के अखबार में टेंडर भी जारी किया था।


ब्रिटिश हुकूमत के समय राजधानी कोलकाता हुआ करती थी। तब एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में 26 जुलाई, 1831 को ताज महल को बेचने की एक खबर छपी। उस समय ताज महल को मथुरा के सेठ लक्ष्‍मीचंद ने सात लाख की बोली लगाकर इसे खरीद लिया था। नीलामी में ये भी शर्त थी कि इसे तोड़कर इसके खूबसूरत पत्थरों को अंग्रेजों को सौंपना होगा। सेठ का परिवार आज भी मथुरा में रहता है।

इतिहासकार प्रो. रामनाथ ने 'दि ताज महल' किताब में इस घटना का विवरण दिया है। उसके मुताबिक, ताज महल के पुराने सेवादारों को अंग्रेजी हुकूमत के विनाशकारी आदेश की भनक लग गई थी। खबर आग की तरह फैली और लंदन तक चली गई। लंदन में एसेंबली में नीलामी पर सवाल उठे। तब गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक को ताज महल की नीलामी रद्द करनी पड़ी।


कुतुब मीनार को देश की सबसे ऊंची इमारत के तौर पर जाना जाता है लेकिन इसकी ऊंचाई भी ताजमहल के सामने छोटी पड़ जाती है। सरकारी आंकड़ो के मुताबिक ताजमहल, कुतुब मीनार से 5 फीट ज़्यादा लंबा है।



शाहजहां ने जब ताजमहल बनवाया था, तो उस पर करीब 32 मिलियन खर्च हुए थे। जिसकी कीमत आज 1,062,834,098 USD(करीब 68 अरब 52 करोड़ 9 लाख 14 हजार 298 रुपए) हैं।


ताजमहल में लगा कोई भी फव्वारा किसी पाइप से नहीं जुड़ा हुआ है, बल्कि हर फव्वारे के नीचे एक तांबे का टैंक बना हुआ है। जो एक ही समय पर भरता है और दबाब बनने पर एक साथ ही काम करता हैं।



8 नवंबर 2000 का दिन ताजमहल को देखने वालों के लिए बड़ा ही शॉक करने वाला था। जादूगर PC Sorkar जूनियर ने ऑप्टिकल साइंस के जरिए ताजमहल को गायब करने का भ्रम पैदा कर दिया था।



शाहजहां की एक ख्वाहिश ये भी थी कि जैसे उसने अपनी बीवी के लिए सफेद ताजमहल बनाया था। वैसा ही एक काला ताजमहल खुद के लिए बनवा सके। लेकिन शाहजहां को जब उसके बेटे औरंगजेब ने कैद कर लिया तो उसका ये सपना बस सपना ही रह गया।




आज हम सब सेल्फी के दीवाने हैं लेकिन George Harrison नाम के इस व्यक्ति ने Fish Eye Lense की मदद से उस समय ही ले ली थी, जब सेल्फी का दौर ही नहीं था। मतलब ताजमहल के साथ पहली सेल्फी George Harrison ने ली थी।



ये बात जरूर हैरान करने वाली है लेकिन ताजमहल का रंग भी बदलता है। दिन के अलग-अलग पहर के हिसाब से ताज भी अपना रंग बदलता रहता है। सुबह देखने पर ताज गुलाबी दिखता है, शाम को दूधिया सफेद और चांदनी रात में सुनहरा दिखता है। ये सब सूर्य की रोशनी सफेद संगमरमर पर पड़ने से होता है।



तहखाने में असली कब्र मौजूद है, जिसका दरवाजा साल में सिर्फ एक बार खोला जाता है। इसके ऊपर की गई नक्काशी नकली कब्र की तुलना में बेहद साधारण है। तहखाने में बनी मुमताज महल की असली कब्र पर अल्लाह के 99 नाम खुदे हुए हैं। इनमें से कुछ हैं, 'ओ नीतिवान, ओ भव्य, ओ राजसी, ओ अनुपम…'वहीं, शाहजहां की कब्र पर खुदा है, 'उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की।'