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आखिर इस फ्रीडम फाइटर के बेटे ने क्यों कहा- ऐसी आजादी से तो गुलामी अच्छी


यूपी के झांसी के रहने वाले सीताराम आजाद ने देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया था। वे चंद्रशेखर आजाद के बेहद करीबियों में से थे। आजादी के 70 साल बाद भी उनका परिवार गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। बहू और 2 पोतियों की मौत पर उनके बेटे को कफन के लिए रुपए उधार लेने पड़े थे। इस 15 अगस्त को हमारी आजादी के 70 साल पूरे हो जाएंगे।

 आजादी के दीवाने सीताराम आजाद के बेटे राजगुरु आजाद परिवार की हालत के बारे में बताते हुए कहते हैं, "मेरी पत्नी और 2 जुड़वां बेटियां एक साथ ही स्वर्ग सिधार गईं। उस समय मेरे पास कफन के पैसे तक नहीं थे। बड़ी मुश्किल से रिश्तेदारों से उधार पैसे मांगकर कफन खरीदा। तब कहीं जाकर उनके शवों की अंतेष्ठि की जा सकी। किसी के लिए इससे बड़ी विपदा और क्या हो सकती है।

- जिसने देश की आजादी में अपना घर-बार नहीं देखा उसके परिवार वालों के पास कफन के पैसे न हो तो ऐसे आजादी किस काम की, जो स्वतंत्रता के 68 सालों बाद भी स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को एक छत तक नसीब नहीं हुई। इससे अच्छा तो अंग्रेजों की गुलामी ही थी।
- आज़ादी के 70 सालों में कई सरकार आईं और चली गईं। लेकिन किसी को उनकी याद नहीं आई और न ही परिवार को कोई सहूलियत न मिली।"

- सीताराम आजाद के 3 बेटे और 4 बेटी थीं। उनका सबसे बड़े बेटे लल्लूराम की एक कर्फ्यू में मौत हो गई थी। उससे छोटा बेटा बाबू नामदेव ग्वालियर में रहता है और सबसे छोटा बेटा राजगुरु आजाद झांसी में अपनी बेटी और दामाद के साथ रहता है।


 लेखक/इतिहास के जानकार जानकी शरण वर्मा बताते हैं, "आजादी के आंदोलन में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेने वाले वाले फ्रीडम फाइटर सीताराम आजाद की पूरी फैमली गुमनामी में जिंदगी बसर कर रही है।

- झांसी के मुहल्ला टकसाल स्थित जिस किराए के मकान में आजाद रहते थे, उनकी फैमली एक साल पहले तक उस मकान में रही। अब वह मकान बेच दिया गया है।
- सीताराम आजाद के 58 साल के बेटे राजगुरु आजाद के पास कोई जीवन यापन करने के लिए व्यवसाय तक नहीं है। ऐसे में नया मकान बनवा पाना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं है। वे अपनी बेटी और दामाद के घर जाकर रहने लगे।"

- जब चंद्रशेखर आजाद झांसी आए तो उनकी मुलाकात सीताराम से हुई। सीताराम आजाद से इतने प्रभावित हुए कि वे अपने नाम के आगे आजाद लिखने लगे और गांधी जी का नमक आंदोलन में खुलकर साथ दिया था।


चंद्रशेखर आजाद की खोज में अंग्रेज दिन-रात एक कर रहे थे। उस समय सीताराम आजाद ने उनकी बहुत मदद की थी।
- कई फ्रीडम फाइटरों ने आजाद के साथ मिलकर हथियारों की फैक्ट्री लगाई थी। आजाद को कुछ समय के लिए झांसी छोड़ना पड़ा था लेकिन सीताराम वहीं डटे रहे और अंग्रेजों से लगातार लड़ाई करते रहे।
- चंद्रशेखर का पता पूछने के लिए उनके हाथ-पैरों में अंग्रेज कीलें ठोक देते थे फिर भी सीताराम ने उनका पात नहीं बताया। इस बीच वे 6 बार जेल भी गए।