हरिद्वार-उन्नाव के बीच गंगा किनारे 500 मीटर तक कचरा फेंका तो 50 हजार जुर्माना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा के किनारों से सटा 100 मीटर तक का इलाका नो डेवलपमेंट जोन घोषित कर दिया है। NGT ने कहा है कि इस इलाके में (हरिद्वार से उन्नाव तक) गंगा के किनारों से 500 मीटर तक किसी भी तरह का कचरा नहीं फेंक सकते। इतने इलाके में अगर कोई कचरा डालता है तो उसे एन्वायरन्मेंट कम्पनसेशन के तौर पर 50 हजार रुपए देने होंगे। बता दें कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा को जीवित नदी का दर्जा दिया है। HC के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
NGT के चेयरपर्सन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने कहा, "ये यूपी सरकार का काम है कि वो चमड़े का कारखाना जाजमऊ से उन्नाव या कहीं भी, जहां उसे ठीक लगे, वहां शिफ्ट कर दे। ये काम 6 हफ्तों में किया जाना चाहिए। "
- ट्रिब्यूनल ने यूपी और उत्तराखंड को गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाटों पर होने वाली धार्मिक गतिविधियों के लिए गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए।
- ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन किया जा रहा है या नहीं, इस पर नजर रखने के लिए NGT ने सुपरवाइजर कमेटी भी बनाई है। ट्रिब्यूनल ने रिपोर्ट और अपने 543 पन्नों के फैसले में ये निर्देश दिए हैं।
किस पिटीशन पर आया फैसला?
यह फैसला एन्वायरन्मेंट एक्टिविस्ट एमसी मेहता की 1985 की एक पिटीशन पर आया। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में यह पिटीशन NGT को ट्रांसफर कर दी थी।
कितनी है हरिद्वार से उन्नाव के बीच दूरी?
- गंगा कुल 2525 किमी इलाके में बहती है। एनजीटी ने हरिद्वार से उन्नाव के बीच के बहाव क्षेत्र के लिए फैसला दिया है। यह दूरी करीब 500 किलोमीटर की है।
उत्तराखंड HC ने फैसले में क्या कहा था?
- 20 मार्च को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा था- गंगा को धर्मग्रंथों में सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है। इसलिए, हम इसे जिंदा नदी के तौर पर देख रहे हैं। living entity करार दिए जाने का मतलब ये है कि गंगा को अब वही अधिकार मिलेंगे जो किसी इंसान को देश का कानून और संविधान देता है।
- साधारण भाषा में कहें तो अगर कोई इंसान गंगा नदी को पॉल्यूटेड करता है, तो उसके खिलाफ वैसे ही कार्रवाई की जाएगी जो किसी शख्स को नुकसान पहुंचाने पर की जाती है।
- सरकारों ने लुप्त हुई सरस्वती को खोजने के लिए तो बहुत कोशिशें की लेकिन गंगा के लिए कुछ नहीं किया। अगर गंगा के मामले में सही तरीके से ध्यान दिया गया होता तो ये नदी फिर से पहले की तरह अपने खोए हुए बहाव और गौरव को हासिल कर सकती थी।
उत्तराखंड सरकार ने की थी SC में अपील
- गंगा, यमुना और इसकी सहायक नदियों को लेकर दिए इस ऑर्डर को उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पिटीशन में पूछा गया है कि अगर बाढ़ में किसी इंसान की मौत हो जाती है तो क्या इससे पीड़ित लोग राज्य के चीफ सेक्रेटरी से मुआवजे के लिए अपील कर सकते हैं? अगर ऐसा हुआ तो राज्य सरकार इसे कैसे दे पाएगी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट गंगा नदी को जीवित नदी (living entity) का दर्जा देने के ऑर्डर पर रोक लगा दी थी।
दुनिया में ऐसा दूसरा मामला
- किसी नदी को ऐसा दर्जा दिए जाने का दुनिया में यह दूसरा मामला था। न्यूजीलैंड की पार्लियामेंट ने हेंगनुई नदी को बचाने के लिए उसे living entity का दर्जा दिया। यह नदी 145 किलोमीटर लंबी है।

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